शुक्रवार, 20 मई 2016

मटका

मटका
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माँ मटका बिल्कुल है गोल
इसका प्यारा सा भूगोल
ख़ूब बनाया कुम्भकार ने
फ़्रिज़ से इसका ज़्यादा मोल!
माटी से यह बना हुआ
स्वाभिमान से तना हुआ
हर कण श्रम से सना हुआ
बिन पेंदी के जाता डोल।
माँ मटका-----
ठंडा-ठंडा करता पानी
पीती चेरी,पीती रानी
पानी पी कर मीठी बानी
शीतल कर दे घर का ठौर।
माँ मटका-----
गर्मी की अद्भुत सौगात
ठंडा कर जाता यह गात
बड़ी निराली इसकी बात
सोंधा पानी लगे अमोल।
माँ मटका----
पूरी गर्मी भर चल जाता
सर्दी में टूटे है नाता
फ़िर-फ़िर मिट्टी में मिल जाता
धरती जैसा इसका मोल!
माँ मटका---
मटके की वह कथा पुरानी
जिसमें था थोड़ा सा पानी
जिसे सुनातीं प्यारी नानी
मटके से नाता बेजोड़।
माँ मटका-----


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